बीकानेर रा निज़ी स्कूल: पढ़ाई रो ठिकाण कि शोषण रो धंधो?
बीकानेर री पढ़ाई री व्यवस्था आज एक सोचण वाळो मोड़ पर आयली है। एक टेम हतो, जद पढ़ाई ने समाज सेवा रो माध्यम मानियो जावतो हतो, पण आजकल ई तो बस एक बिजनेस बन गयो है—खासकर के निज़ी स्कूलां में। बालकां रो उजास रो सपना लेवण वाला मातापिता हर साल फीस, किताबां अर युनिफॉर्म के नाम पर आपणी खून-पसीना री कमाई उढ़ावै है, पण बदला में राहत मिलै के?
महंगी किताबां अर ड्रेस को दबाव
शहर रा घणा निज़ी स्कूल अब किताबां अर युनिफॉर्म एकल दुकानां सूं खरीदे को जोर करै है। ई किताबां बाजार री तुलना में घणी महंगी होवै है, अर कई वार स्कूल री “ब्रांडेड” ड्रेस तो बाजार में दुगणी कीमत में मिलै है। सवाल ई है कि के इन महंगी चीज़ां सूं बालकां री पढ़ाई में कोई सुधार आवै है?
अभिभावकां री मजबूरी
हर साल जद नवा सत्र चालू होवै है, तो ई समय खुशियां सूं घणो चिंता लावै है—खासकर के मध्यम अर निम्न वर्ग रा परिवारां खातर। मातापिता मजबूरी में स्कूल रा हर हुकम मानै पड़ै है, क्यूंकि उंका सपना होवै है आपरा बालकां ने उजास रो भविष्य देवण रो। पण ई सपना अब निज़ी स्कूलां खातर एक कमाई को धंधो बनग्यो है के?
शिक्षा विभाग री जिम्मेदारी
हवेली समय है, जद शिक्षा विभाग ने गम्भीरता सूं हस्तक्षेप करजो जरूरी है। नियम तो है, पण उन पर अमल कहां होवै है? नाहीं कोई देखरेख है, नाहीं कोई कार्यवाही। जद समय रहते सख्ती नहीं करी गई, तो ई पढ़ाई रो धंधो और भी बेशरमी सूं चालू रहसी।
अंत में एक सवाल
के हम पढ़ाई ने बस अमीरां री पहुंच तक सीमित करवा चाहैला? के फेर एक एड़ो बीकानेर बनावणो चाहैला, जिथे हर बालक बिना शोषण के, बराबरी री पढ़ाई कर सके?